मप्र में कितनी सीटों पर आकाओं का हर पैंतरा फेल, किन दिग्गजों के लिए बनेंगे बड़ा खतरा ? 40 सीटें बनीं गले की फांस

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Harish Divekar
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मप्र में कितनी सीटों पर आकाओं का हर पैंतरा फेल, किन दिग्गजों के लिए बनेंगे बड़ा खतरा ? 40 सीटें बनीं गले की फांस

BHOPAL. मध्यप्रदेश में रूठने मनाने का दौर अब खत्म हो चुका है। अब तैयारी सीधे जंग की है। वैसे तो जंग में दो सेनाएं टकराती हैं। दो महारथियों की भिड़ंत होती है, लेकिन मध्यप्रदेश की कुछ सीटों पर दो नहीं एक साथ तीन महारथी टकराएंगे। उससे भी ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि कुछ महारथी ऐसे भी होंगे जो पहले किसी एक सेना का नेतृत्व कर चुके हैं, लेकिन अब अपने ही पुराने साथी से भिड़ने और उसे हराने के लिए तैयार हैं। इस भिड़ंत को रोकने के लिए अमित शाह, शिवराज सिंह चौहान, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। कुछ जगह वो कामयाब हुए, लेकिन कुछ जगह से नाकाम होकर लौटाना पड़ा। अब जहां नाकाम हो चुके हैं वहां हार जीत टेढ़ी खीर नजर आती है।

बागियों को मनाने में बीजेपी-कांग्रेस दोनों के दिग्गज फेल

नाम वापसी का समय गुजरने के बाद अब बागियों की घर वापसी का रास्ता भी बंद हो चुका है। या यूं कहें कि बागी खुद चाहते थे कि ये रास्त बंद हो जाए। सियासी भविष्य और पार्टी की च्वाइस में उन्होंने अपने हिसाब से सियासी भविष्य को गढ़ना चुना और पार्टी का दामन छोड़ दिया। ऐसे बागियों को मनाने में बीजेपी कांग्रेस दोनों के ही दिग्गज फेल हुए। प्रदेश की चालीस सीटें ऐसी हैं जहां न अमित शाह का फोन पर काम करना काम आया न शिवराज सिंह चौहान की बातें रंग ला सकीं। कांग्रेस के कुछ बागियों ने भी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की समझाइश पर कान नहीं धरे। दोनों दलों की लिस्ट जारी होने के बाद 400 से ज्यादा बागी प्रत्याशी मैदान में उतर आए थे। कोई निर्दलीय तो कोई तीसरे मोर्चे के किसी दल के साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार था। उसके बाद से ही डैमेज कंट्रोल का दौर तो शुरू हो गया था। जिसके बाद 388 प्रत्याशियों ने नाम भी वापस ले लिए, लेकिन चालीस प्रत्याशी अब भी मैदान में डटे हैं। जो अपने ही पुराने दल के लिए मुश्किल बन सकते हैं।

चालीस बागी किसका खेल बिगाड़ेंगे

चालीस सीटें और चालीस बागी, ये आंकड़ा सियासी दलों की नींद उड़ाने के लिए काफी है। सत्ता के खेल में एक एक सीट मायने रखती है। गिनती जरा इधर-उधर क्या हुई सरकार बनने का सपना और पांच साल के लिए टल सकता है या 18 साल पुरानी सरकार एक झटके में बिखर सकती है। तो, सांसत में दोनों ही दल हैं। चालीस बागी किसका खेल बिगाड़ेंगे। जिन्हें काबू में करने के लिए दोनों दलों के अली बाबा तो खूब आगे आए, लेकिन ऐसा कोई मंत्र नहीं मिला कि खुल जा सिम सिम कहें और बगावत को गुफा का दरवाजा खोलकर उसमें ही कैद कर दें। इन चालीस के चालीस बागियों में कोई कद्दावर नेता है तो कोई पूर्व मंत्री और कुछ मंत्री को टक्कर देने तक की तैयारी में है।

हार-जीत का समीकरण बिगाड़ने बागियों की संख्या बड़ी है

बरसों तक बीजेपी की वफादार रहीं पूर्व मंत्री रंजना बघेल से अमित शाह ने बात की और रंजना बघेल ने नाम वापस ले लिया, लेकिन सारे उम्मीदवार रंजना बघेल की तरह सरल सहज या मजबूर नहीं निकले। नंदकुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन को ही ले लीजिए। जिनसे अमित शाह ने खुद फोन पर चर्चा की, लेकिन वो नहीं माने। ऐसे बहुत से बागी उम्मीदवार नाम वापसी का समय बीतने के बाद भी मैदान में डटे हैं। इनकी गिनती चालीस ही बची है, लेकिन हार जीत का समीकरण गड़बड़ाने के लिए ये संख्या बहुत बड़ी है। चालीस न भी सही दस ही बागी अगर नंबर गेम में उलटफेर करते हैं तो सरकार की तस्वीर बदल सकती है।

मैदान में बचे चालीस बागी का मूल दल कांग्रेस या बीजेपी ही रहा है। जिनके टिकट कटे और वो अपने दम पर मैदान में कूद चुके हैं।

जिनके टिकट कटे, वो मैदान में HDR

  • मुरैना की सुमावली सीट से कुलदीप सिकरवार डटे हुए हैं। कांग्रेस ने पहले इन्हें ही टिकट दिया बाद में बदलकर अजब सिंह कुशवाह को टिकट दिया। अब सिकरवार बसपा से मैदान में हैं।
  • मुरैना सीट से पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के बेटे राकेश सिंह ने भी घर वापसी नहीं की।
  • दिमनी में कांग्रेस के बागी बलवीर दंडोतिया बसपा से मैदान संभाल रहे हैं।
  • लहार में बीजेपी के पूर्व विधायक रसाल सिंह बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं।
  • चाचौड़ा में पूर्व बीजेपी नेता ममता मीणा आम आदमी पार्टी से मोर्चा संभाल रही हैं।
  • सागर में ब जेपी के बागी मुकेश जैन ढाना आप पार्टी से मैदान में उतरे हैं।
  • बीजेपी के बागी केके श्रीवास्तव टीकमगढ़ में डटे हुए हैं।
  • कांग्रेस के पूर्व विधायक यादवेंद्र सिंह बसपा से मैदान में डटे हुए हैं।
  • सिवनी मालवा में कांग्रेस के बागी ओमप्रकाश रघुवंशी खेल बिगाड़ेंगे।
  • भोपाल उत्तर में कांग्रेस के बागी आमिर अकील अपने ही भतीजे की मुश्किलें बढ़ाएंगे।
  • उनके अलावा नासिर इस्लाम और मो. सऊद भी चुनाव लड़ने वाले हैं।
  • आलोट में कांग्रेस से बगावत कर प्रेमचंद गुड्डू मैदान में उतर चुके हैं।
  • कद्दावर मंत्री अरविंद भदौरिया की सीट अटेर से बीजेपी के बागी मुन्ना सिंह भदौरिया सपा से चुनाव लड़ रहे हैं।
  • इस सीट से कांग्रेस ने सत्यदेव कटारे के बेटे हेमंत कटारे पर ही दांव खेला है।
  • सीधी से बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ल इस बार निर्दलीय मैदान में हैं।
  • निवाड़ी से कुक्कुट विकास निगम के अध्यक्ष नंदराम कुशवाहा निर्दलीय।
  • बड़वारा से पूर्व मंत्री मोती कश्यप सपा से मैदान में।
  • गोटेगांव से पूर्व विधायक शेखर चौधरी निर्दलीय।
  • बरगी से जयकांत सिंह निर्दलीय।
  • बड़नगर से राजेंद्र सिंह सोलंकी निर्दलीय।
  • सिहोरा से कौशल्या गोटिया निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं।

रूठे हुए सूरमाओं को मनाने में दोनों दलों ने पूरी ताकत झौंक दी। नामांकन के आखिरी तीन दिनों तक खुद अमित शाह मध्यप्रदेश में रहे। बागियों से मेल मुलाकात भी की। कुछ कोशिशे रंग भी लाईं। जाहिर है बीजेपी के लिए ये बड़ी उपलब्धि है। कांग्रेस में भी बागियों को मनाने की जिम्मेदारी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने संभाली और कुछ की घर वापसी में वो भी कामयाब रहे।

पुराने समीकरणों के आधार पर इस बार आकलन मुश्किल है

बसपा और सपा की मौजूदगी ने अधिकांश कांग्रेस के वोट काटे हैं। इससे बीजेपी की जीत की संभावनाएं प्रबल होती रही हैं। इस बार आप भी मैदान में हैं, लेकिन पुराने समीकरणों के आधार पर इस बार आकलन मुश्किल है। वजह ये है कि चेहरा बीजेपी या कांग्रेस का रहा है और इलेक्शन सिंबल कुछ और होने जा रहा है। नए और पुराने की खिचड़ी मतदाताओं को कंफ्यूज कर सकती है। जिस वजह से किस सीट पर मूल चेहरा बागी होने के बाद किसे नुकसान पहुंचाने जा रहा है इसका आकलन आसान नहीं है।

अधिकांश बागियों की घर वापसी के बाद 230 सीटों पर अब 3353 प्रत्याशी चुनावी मैदान में नजर आएंगे

रूठे हुए ये नेता रुलाएंगे या फिर अपने फैसले पर खुद ही रोएंगे। इसके अंदाजा चुनाव परिणामों के साथ होगा। लेकिन जिस तरह से बागियों की वजह से कांग्रेस और बीजेपी हैरान परेशान नजर आ रही हैं। उसे देखते हुए ये कहना तो आसान है कि बागी इस बार अपना असर तो दिखाएंगे। हो सकता है पहले उनका टिकट मूल दल से कट गया, लेकिन चुनाव में वो जीत जाएं और उनकी पार्टी ही उन्हें वापस बुला ले। ऐसे में उनकी तो बल्ले-बल्ले होना तय है। यानी चुनाव से पहले रूठने मनाने से शुरू हुआ बागियों का सिलसिला बाद में पार्टी को समर्थन देने की मानमनोव्वल तक जारी रहेगा।

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